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"परिन्दे अब भी पर तोले हुए हैं / दुष्यंत कुमार" के अवतरणों में अंतर
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परिन्दे अब भी पर तोले हुए हैं | परिन्दे अब भी पर तोले हुए हैं | ||
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हवा में सनसनी घोले हुए हैं | हवा में सनसनी घोले हुए हैं | ||
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तुम्हीं कमज़ोर पड़ते जा रहे हो | तुम्हीं कमज़ोर पड़ते जा रहे हो | ||
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तुम्हारे ख़्वाब तो शोले हुए हैं | तुम्हारे ख़्वाब तो शोले हुए हैं | ||
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ग़ज़ब है सच को सच कहते नहीं वो | ग़ज़ब है सच को सच कहते नहीं वो | ||
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क़ुरान—ओ—उपनिषद् खोले हुए हैं | क़ुरान—ओ—उपनिषद् खोले हुए हैं | ||
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मज़ारों से दुआएँ माँगते हो | मज़ारों से दुआएँ माँगते हो | ||
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अक़ीदे किस क़दर पोले हुए हैं | अक़ीदे किस क़दर पोले हुए हैं | ||
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हमारे हाथ तो काटे गए थे | हमारे हाथ तो काटे गए थे | ||
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हमारे पाँव भी छोले हुए हैं | हमारे पाँव भी छोले हुए हैं | ||
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कभी किश्ती, कभी बतख़, कभी जल | कभी किश्ती, कभी बतख़, कभी जल | ||
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सियासत के कई चोले हुए हैं | सियासत के कई चोले हुए हैं | ||
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हमारा क़द सिमट कर मिट गया है | हमारा क़द सिमट कर मिट गया है | ||
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हमारे पैरहन झोले हुए हैं | हमारे पैरहन झोले हुए हैं | ||
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चढ़ाता फिर रहा हूँ जो चढ़ावे | चढ़ाता फिर रहा हूँ जो चढ़ावे | ||
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तुम्हारे नाम पर बोले हुए हैं | तुम्हारे नाम पर बोले हुए हैं | ||
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11:19, 4 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण
परिन्दे अब भी पर तोले हुए हैं
हवा में सनसनी घोले हुए हैं
तुम्हीं कमज़ोर पड़ते जा रहे हो
तुम्हारे ख़्वाब तो शोले हुए हैं
ग़ज़ब है सच को सच कहते नहीं वो
क़ुरान—ओ—उपनिषद् खोले हुए हैं
मज़ारों से दुआएँ माँगते हो
अक़ीदे किस क़दर पोले हुए हैं
हमारे हाथ तो काटे गए थे
हमारे पाँव भी छोले हुए हैं
कभी किश्ती, कभी बतख़, कभी जल
सियासत के कई चोले हुए हैं
हमारा क़द सिमट कर मिट गया है
हमारे पैरहन झोले हुए हैं
चढ़ाता फिर रहा हूँ जो चढ़ावे
तुम्हारे नाम पर बोले हुए हैं