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"पावस-संध्या / शलभ श्रीराम सिंह" के अवतरणों में अंतर

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सींग टूट जाने की
प्रार्थना को जीता साँड़
खन्दक में गिर गया !
उसके प्रतिद्वन्दी ने
मुँह घुमा लिया !
अब तो
रक्त-स्राव ओढ़े
रौंदी ज़मीन भर शेष है !
(1965)