भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बसन्त-संध्या / शलभ श्रीराम सिंह" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह |संग्रह=कल सुबह होने के पहले / श…)
 
(कोई अंतर नहीं)

07:35, 5 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण

उन आँखों की चमक
बढ़ गई है
जिनमें
अँधेरे के पार
प्रतीक्षार्थिनी थी
एक सुबह !
खिल गया है
वह मुख
जिसके प्रकाश में
चल रही है
यह अन्तहीन यात्रा !
यात्रा जो शुरु नहीं हुई !
(1965)