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"मौत से था डर जिन्हें सब घर गए / विनय कुमार" के अवतरणों में अंतर

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मौत से था डर जिन्हें सब घर गए।<BR><BR>
 
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02:07, 6 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण

मौत से था डर जिन्हें सब घर गए।

क्या पता ज़िन्दा बचे या मर गए।

हारने वाले शरीक़े जंग है जीतने वाले उधर डर कर गए।

थी वजह कोई हुए मुजरिम फ़रार जेल में उठते हुए कुछ सर गए।

सर फ़लक लौटा दिये सरकार ने मुफ़्त में इन पंछियों के पर गए।

लीजिए अब खेल का खुलकर मज़ा कुछ नियम मैदान से बाहर गए।

खून ताज़ा ज़ख्म का मरहम हुआ ज़ख्म थे जितने पुराने भर गए।

वो ग़ज़ल जो कह न पाएँगे कभी नस्ले नौ के नाम उसको कर गए।