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| |रचनाकार=तुलसीदास | | |रचनाकार=तुलसीदास |
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− | '''पद संख्या 21 तथा 22'''
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− | (21)
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− | ज्मुना ज्यों ज्यों लागी बाढ़न।
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− | त्यों त्यों सुकृत-सुभट कलि भूपहिं, निदरि लगे बहु काढ़न।1।
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− | ज्यों ज्यों जल मलीन त्यों त्यों जमगन मुख मलीन लहै आढ़ न
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− | तुलसिदास जगदघ जवास ज्यों अनघमेघ लगे डाढ़न।2।
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− | (22)
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− | स्ेाइअ सहित सनेेह देह भरि,कामधेनु कलि कासी।
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− | समनि सोक संताप पाप रूज, सकल-सुमंगल-रासी।1।
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− | मरजादा चहुँ ओर चरनबर, सेवत सुरपुर-बासी।
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− | तीरथ सब सुभ अंग रोम सिवलिंग अमित अविनासी।2।
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− | अंतरऐन ऐन भल, थन फल, बच्छ बेद-बिस्वासी।
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− | गलकंबल बरूना बिभा िजनु, लूम लसति, सरिताऽसि।3।
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− | दंड पानि भैरव बिषान,तलरूचि-खलगन-भयदा-सी।
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− | लोलदिनेस त्रिलोचन लोचन, करनघंट घंटा-सी।4।
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− | मनिकर्निका बदन-ससि सुंदर, सुसरि-सुख सुखमा-सी।
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− | स्वारथ परमारथ परिपूरन,पंचकोसि महिमा-सी।5।
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− | बिस्वनाथ पालक कृपालुचित7 लालति नित गिरजा-सी।
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− | सिद्धि, सची, सारद पूजहिं मन जोगवति रहति रमा-सी।
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− | पंचााच्छरी प्रान7 मुद माधव7 गब्य सुपंचनदा-सी।
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− | ब्रह्म-जीव-सम रामनाम जुग, आखर बिस्व बिकासी।7।
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− | चारितु चरिति करम कुकरम करि, मरत जीवगन घासी।
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− | लहत परम पद प्य पावन, जेहि चहत प्रपंच- उदासी।8।
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− | कहत पुरान रची केसव निज कर-करतूति कला -सी।
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− | तुलसी बसि हरपुरी राम जपु, जो भयो चहै सुपासी।9।
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