भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"जब कोई आपको हम-सा मिले हमसे बताइएगा/ विनय प्रजापति 'नज़र'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
}}
 
}}
 
[[Category:ग़ज़ल]]
 
[[Category:ग़ज़ल]]
'''लेखन वर्ष: २००२''' <br/><br/>
+
 
जब कोई आपको हम-सा मिले हमसे बतायिएगा<br/>
+
<poem>
देखेंगे उसकी जल्वागरी हमसे मिलवायिएगा<br/><br/>
+
'''लेखन वर्ष: २००२/२०११'''
हमने देखा है लोग मतलब परस्त होते हैं<br/>
+
 
आप ख़ुद को मतलब परस्तों से बचायिएगा<br/><br/>
+
जब कोई आपको हम-सा मिले हमसे बताइएगा
बड़ी मीठी होती है अय्यारी यहाँ ख़ुदगरज़ों की<br/>
+
देखेंगे उसकी जल्वागरी हमसे मिलवाइएगा
पेश बहुत चालाक ऐसे अय्यारों से आयिएगा<br/><br/>
+
 
हमने ज़िन्दगी को दो पहलू से जिया हरदम<br/>
+
हमने देखा है यहाँ लोग मतलब परस्त होते हैं
आप वक़्त के चाहे जिस मोड़ पर बुलायिएगा<br/><br/>
+
आप ख़ुद को ऐसे मतलब परस्तों से बचाइएगा
वक़्त इक आदत है जो बदल जाया करती है<br/>
+
 
आप आदतों के ऐसे बदलाव से बाज़ आयिएगा<br/><br/>
+
बड़ी मीठी होती है अय्यारी<ref>चालाकी</ref> यहाँ ख़ुदगरज़ों की
 +
पेश बहुत चालाक ऐसे अय्यारों से आइएगा
 +
 
 +
हमने ज़िन्दगी को दो पहलुओं से जिया है हरदम
 +
आप मुझे वक़्त के चाहे जिस मोड़ पर बुलाइएगा
 +
 
 +
वक़्त इक आदत रही है जो बदल जाया करती है
 +
आप आदतों के ऐसे बदलाव से बाज़ आइएगा
 +
 
 +
{{KKMeaning}}
 +
</poem>

13:52, 9 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण

लेखन वर्ष: २००२/२०११

जब कोई आपको हम-सा मिले हमसे बताइएगा
देखेंगे उसकी जल्वागरी हमसे मिलवाइएगा

हमने देखा है यहाँ लोग मतलब परस्त होते हैं
आप ख़ुद को ऐसे मतलब परस्तों से बचाइएगा

बड़ी मीठी होती है अय्यारी<ref>चालाकी</ref> यहाँ ख़ुदगरज़ों की
पेश बहुत चालाक ऐसे अय्यारों से आइएगा

हमने ज़िन्दगी को दो पहलुओं से जिया है हरदम
आप मुझे वक़्त के चाहे जिस मोड़ पर बुलाइएगा

वक़्त इक आदत रही है जो बदल जाया करती है
आप आदतों के ऐसे बदलाव से बाज़ आइएगा

शब्दार्थ
<references/>