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"जबीने-माह पर गेसू की लहर याद आती है/ विनय प्रजापति 'नज़र'" के अवतरणों में अंतर

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एक शाल में लिपटी बैठी रहती थी जब तुम
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वह सर्दियों की गर्म दोपहर याद आती है
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जिसे तुमने घर आके भी न पढ़ा मेरी आँखों में
 
जिसे तुमने घर आके भी न पढ़ा मेरी आँखों में
वह फ़ुग़ाँ वह आहे-कम-असर याद आती है
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आज भी वह पहला प्यार वह उमर याद आती है
  
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जबीने-माह पर: चाँद के चेहरे पर, फ़ुगाँ: दर्द भरा रुदन, बाइस: कारण
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14:35, 9 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण


लेखन वर्ष: २००३/२०११

जबीने-माह<ref>चाँद के चेहरे पर</ref> पर गेसू<ref>ज़ुल्फ़</ref> की लहर याद आती है
वह गुलाबी ख़ुशरंग शामो-सहर<ref>शाम और सुबह</ref> याद आती है

जिसने हमें रंगे-ज़िन्दगी<ref>ज़िंदगी के रंग</ref> का दिवाना कर दिया
वो उसकी तेज़ क़ातिल तीरे-नज़र याद आती है

एक नीली शाल में लिपटी बैठी रहती थी जब तुम
वह सर्दियों की गुनगुनी दोपहर याद आती है

जिसे तुमने घर आके भी न पढ़ा मेरी आँखों में
आज वह फ़ुग़ाँ<ref>दर्द भरा रुदन</ref> वह आहे-कम-असर<ref>जिस आह का कोई असर न हो</ref> याद आती है

मुझपे बाइस<ref>कारण,वजह</ref> नहीं खुलता तुमसे बिछड़ जाने का
आज भी वह पहला प्यार वह उमर याद आती है

शब्दार्थ
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