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"तेरी तीरे-नज़र किस अदा से यार उठती है/ विनय प्रजापति 'नज़र'" के अवतरणों में अंतर

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तेरी तीरे-नज़र किस अदा से यार उठती है
 
तेरी तीरे-नज़र किस अदा से यार उठती है
रह-रहकर रुक-रुककर बार-बार उठती है
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रह-रहकर रुक-रुककर ये बार-बार उठती है
  
 
हम बीमारि-ए-इश्क़ के मारे हुए हैं और
 
हम बीमारि-ए-इश्क़ के मारे हुए हैं और
तेरी नज़र पैनी हो कर बार-बार उठती है
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हैं चमन में और भी नज़ारे ऐ ‘नज़र’ लेकिन
 
हैं चमन में और भी नज़ारे ऐ ‘नज़र’ लेकिन
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1. नाज़ और नख़रे; 2. लड़ाई, क़त्ल; 3. ओर, तरफ़; 4. तलवार की तरह (आवाज़ करती हुई); 5. बात करने के लिए; 6. प्रेयसी की तरफ़
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01:08, 10 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण


लेखन वर्ष: २००४/२०११

तेरी तीरे-नज़र किस अदा से यार उठती है
रह-रहकर रुक-रुककर ये बार-बार उठती है

हम बीमारि-ए-इश्क़ के मारे हुए हैं और
तेरी नज़र पैनी होकर बार-बार उठती है

नाज़ो-नख़्वत<ref>नाज़ और नख़रे</ref> के पैमाने किस तरह उठाऊँ
नज़र जब उठे है तो ज़िबह<ref>लड़ाई, क़त्ल</ref> को यार उठती है

हम देखते हैं तेरे जानिब<ref>ओर, तरफ़</ref> प्यार की नज़र से
तेरी नज़र, तौबा! मानिन्दे-कटार<ref>तलवार की तरह (आवाज़ करती हुई)</ref> उठती है

उस ग़ैर से तुमको मोहब्बत हुई है बे-वजह
और फिर भी नज़र बाइसे-गुफ़्तार<ref>बात करने के लिए</ref> उठती है

हैं चमन में और भी नज़ारे ऐ ‘नज़र’ लेकिन
फिर क्योंकर तेरी नज़र सिम्ते-यार<ref>प्रेयसी की ओर</ref> उठती है

शब्दार्थ
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