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दलनिहार दारिद दुकाल दुख, दोष गोर घन घामको॥१॥ | दलनिहार दारिद दुकाल दुख, दोष गोर घन घामको॥१॥ | ||
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भलो लोक परलोक तासु जाके बल ललित-ललामको। | भलो लोक परलोक तासु जाके बल ललित-ललामको। | ||
तुलसी जग जानियत नामते सोच न कूच मुकामको॥३॥ | तुलसी जग जानियत नामते सोच न कूच मुकामको॥३॥ | ||
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20:01, 13 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण
कलि नाम काम तरु रामको।
दलनिहार दारिद दुकाल दुख, दोष गोर घन घामको॥१॥
नाम लेत दाहिनो होत मन, बाम बिधाता बामको।
कहत मुनीस महेस महतम, उलटे सूधे नामको॥२॥
भलो लोक परलोक तासु जाके बल ललित-ललामको।
तुलसी जग जानियत नामते सोच न कूच मुकामको॥३॥