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"बताऊँ क्यों अजीब हूँ / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'" के अवतरणों में अंतर

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मैं शायर-ओ-अदीब हूँ
 
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मिले हैं ग़म ख़ुशी नहीं
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हैं आप मेरे हमसफ़र
बहुत ही बदनसीब हूँ
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मैं कितना खुशनसीब हूँ
  
 
मैं खुद से दूर हो गया
 
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मैं आदमी ग़रीब हूँ
 
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हूँ क़ैद में हयात की
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हयात के कफ़स में हूँ
 
मैं एक अन्दलीब हूँ
 
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फ़क़त तेरा हबीब हूँ
 
फ़क़त तेरा हबीब हूँ
  
है तुझसे प्यार, मुझको तू
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कभी - कभी ये लगता है
समझ न मैं 'रक़ीब' हूँ
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मैं अपना ही 'रक़ीब' हूँ
 
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10:00, 14 अप्रैल 2011 का अवतरण


बताऊँ क्यों अजीब हूँ
मैं शायर-ओ-अदीब हूँ

हैं आप मेरे हमसफ़र
मैं कितना खुशनसीब हूँ

मैं खुद से दूर हो गया
हुज़ूर से क़रीब हूँ

धनी हूँ बात का सनम
मैं आदमी ग़रीब हूँ

हयात के कफ़स में हूँ
मैं एक अन्दलीब हूँ

ओ जानेमन यक़ीन कर
फ़क़त तेरा हबीब हूँ

कभी - कभी ये लगता है
मैं अपना ही 'रक़ीब' हूँ