भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कदम्ब-कालिन्दी-2 / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=
 
|संग्रह=
 
}}
 
}}
{{KKCatKavita}}
+
{{KKAnthologyLove}}
<Poem>
+
{{KKCatKavita‎}}
 +
<poem>
 
'''(दूसरा वाचन)
 
'''(दूसरा वाचन)
  

11:18, 15 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण

(दूसरा वाचन)

अलस कालिन्दी-- कि काँपी
टेर वंशी की
नदी के पार।
कौन दूभर भार
अपने-आप
झुक आई कदम की डार
धरा पर बरबस झरे दो फूल।

द्वार थोड़ा हिले--
झरे, झपके राधिका के नैन
अलक्षित टूट कर
दो गिरे तारक बूंद।
फिर-- उसी बहती नदी का
वही सूना कूल !--
पार-- धीरज-भरी
फिर वह रही वंशी टेर !