भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"एक दिन छोटी बत्तख़ों की तरह / नवनीता देवसेन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKAnooditRachna |रचनाकार=नवनीता देवसेन }} Category:बांगला <poem> चुप रहते-रहते ...)
 
 
पंक्ति 8: पंक्ति 8:
 
फूटेंगे बोल,
 
फूटेंगे बोल,
 
एक दिन नदी की बाँक पर ठिठक कर
 
एक दिन नदी की बाँक पर ठिठक कर
मुड़कर खड़े-खड़े हाँक लगा कर कहूंगी : बस..., अब और नहीं।
+
मुड़कर खड़े-खड़े हाँक लगा कर कहूँगी : बस..., अब और नहीं।
 
सूर्य अस्ताचल की ओर जाए या कि सिरहाने जलता रहे
 
सूर्य अस्ताचल की ओर जाए या कि सिरहाने जलता रहे
 
मैं कहूंगी : अब और नहीं।
 
मैं कहूंगी : अब और नहीं।
पंक्ति 14: पंक्ति 14:
 
सारी कड़वाहट, सारा रूखापन
 
सारी कड़वाहट, सारा रूखापन
 
पारे की मानिन्द भारी हो ढुलक जाएगा
 
पारे की मानिन्द भारी हो ढुलक जाएगा
रेत, पत्थर और कंकड़ों के साथ मिल कर
+
रेत, पत्थर और कँकड़ों के साथ मिल कर
 
बहुत गहराई में तलछट बन जमा रहेगा।
 
बहुत गहराई में तलछट बन जमा रहेगा।
 
ऊपर खेलता रहेगा हल्की स्वच्छता का स्रोत
 
ऊपर खेलता रहेगा हल्की स्वच्छता का स्रोत
पंक्ति 20: पंक्ति 20:
 
शुचिता की लहरों में अपनी देह को बहाती
 
शुचिता की लहरों में अपनी देह को बहाती
 
छोटी बत्तख़ों-सी निश्चिन्त  
 
छोटी बत्तख़ों-सी निश्चिन्त  
मैं तब आत्मीय पानी में उतर जाऊंगी।
+
मैं तब आत्मीय पानी में उतर जाऊँगी।
 
+
  
 
'''मूल बंगला से अनुवाद : उत्पल बैनर्जी
 
'''मूल बंगला से अनुवाद : उत्पल बैनर्जी
 
</poem>
 
</poem>

10:54, 18 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: नवनीता देवसेन  » एक दिन छोटी बत्तख़ों की तरह

चुप रहते-रहते एक दिन
फूटेंगे बोल,
एक दिन नदी की बाँक पर ठिठक कर
मुड़कर खड़े-खड़े हाँक लगा कर कहूँगी : बस..., अब और नहीं।
सूर्य अस्ताचल की ओर जाए या कि सिरहाने जलता रहे
मैं कहूंगी : अब और नहीं।
तब पेड़-पौधों, घास-पातों में सिहरती हवा बहने लगेगी,
सारी कड़वाहट, सारा रूखापन
पारे की मानिन्द भारी हो ढुलक जाएगा
रेत, पत्थर और कँकड़ों के साथ मिल कर
बहुत गहराई में तलछट बन जमा रहेगा।
ऊपर खेलता रहेगा हल्की स्वच्छता का स्रोत
ऊपर झिलमिलाती हज़ारों सूर्य की तिरछी कटारें
शुचिता की लहरों में अपनी देह को बहाती
छोटी बत्तख़ों-सी निश्चिन्त
मैं तब आत्मीय पानी में उतर जाऊँगी।

मूल बंगला से अनुवाद : उत्पल बैनर्जी