भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"पिता के लिए शोकगीत-4 / एकांत श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=एकांत श्रीवास्तव |संग्रह=मिट्टी से कहूंगा धन्...) |
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह=मिट्टी से कहूंगा धन्यवाद / एकांत श्रीवास्तव | |संग्रह=मिट्टी से कहूंगा धन्यवाद / एकांत श्रीवास्तव | ||
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatKavita}} | |
+ | {{KKAnthologyPita}} | ||
<Poem> | <Poem> | ||
आधी राह तक आए पिता | आधी राह तक आए पिता |
00:56, 19 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण
आधी राह तक आए पिता
मेरे साथ
और उंगली छोड़ दी
घर के दर्पण ने दिनों तक याद किया
उस एक चेहरे को
जो अब उसमें नहीं झाँकता
रसोई की एक खाली जगह पर
दिनों तक डोलती रही उदासी
जहाँ अब कोई थाली परोसी नहीं जाती
आंगन में खाली पड़ी रही
दिनों तक आराम-कुर्सी
बंद पड़ा रहा अख़बार
और ठंडी होती रही एक प्याली चाय
अच्छे दिनों की झाड़ियों में
साँप की तरह दुबके थे बुरे दिन
जहाँ मैं अपनी गुमी हुई
गेंद लेने गया था
स्मृतियों के अंधियारे में
कामना की धूप टपकती है कभी-कभी
कभी-कभी यहाँ रो लेता है
एक जवान-जहान लड़का
अब मैं आपको कैसे बताऊँ
कि मेरे भीतर एक निर्जन मैदान में
आज भी दौड़ रहा है
एक पाँच साल का बच्चा
पिता की एक चपत के लिए तरसता हुआ ।