भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पिता जी ( शब्दांजलि-१) / नवनीत शर्मा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=
 
|संग्रह=
 
}}
 
}}
[[Category:कविता]]
+
{{KKCatKavita}}
 +
{{KKAnthologyPita}}
 
<poem>  
 
<poem>  
  
पंक्ति 26: पंक्ति 27:
 
हो जाना चाहती हैं।
 
हो जाना चाहती हैं।
 
</poem>
 
</poem>
'''मोटा पाठ'''
 

01:03, 19 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण

 

घरों में बलग़मी छाती का होना

दीवारों का चौकस

छत का मजबूत होना है।

वही झेलती है

तीरों की धूप

कुरलाणियों की बरखा ।


दुख बस यही कि खिड़कियाँ

बहुत जल्‍द आसमान

हो जाना चाहती हैं।