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"हर वो शख़्स जिसको मैंने अपना ख़ुदा कहा/ विनय प्रजापति 'नज़र'" के अवतरणों में अंतर

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हर वो शख़्स जिसको मैंने अपना ख़ुदा कहा
 
हर वो शख़्स जिसको मैंने अपना ख़ुदा कहा
बादे-मतलब उस ने मुझ से अलविदा कहा
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जिसे मैं मानता हूँ धोख़ा-ओ-अय्यारी यारों
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ज़माने ने उस को हुस्न की इक अदा कहा
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वह प्यार जिस को एहसास कहते थे सभी
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उसने आज उसको बदन की इक सदा कहा
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मैं था उसके पीछे ज़माने की ग़ालियाँ खाकर
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मैं था उसका ज़माने की ग़ालियाँ खाकर
उस ने मुझे किसी ग़ैर हुस्न पर फ़िदा कहा
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उसने मुझे किसी ग़ैर हुस्न पर फ़िदा कहा
  
जिन आँखों का तअल्लुक मैं देता था मस्जिद से
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जिन आँखों का तअल्लुक<ref>सम्बंध, relation</ref> रहा है मस्जिद से
उसे उस के यार ने महज़ इक मैक़दा कहा
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उन्हें उसके यार ने महज़ मैक़दा कहा
  
मैं कहता था उससे अपने ज़ख़्मों की कहानी
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उससे थी मेरे अपने ज़ख़्मों की कहानी
उसने कुछ और नये ज़ख़्मों को तयशुदा कहा
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सदा: पुकार, call; बादे-मतलब: मतलब पूरा होने के बाद, ; धोख़ा-ओ-अय्यारी: धोख़ा और चालाकी, cheating and cleverness; तअल्लुक: ताल्लुक, relation; मैकदा:शराबख़ाना, bar; तयशुदा:निश्चित, certain
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10:43, 19 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण


लेखन वर्ष: २००४/२०११

हर वो शख़्स जिसको मैंने अपना ख़ुदा कहा
बादे-मतलब<ref>मतलब पूरा होने के बाद, after fulfilment of need</ref> उसने मुझसे अलविदा कहा

जिसको मैं मानता हूँ धोख़:-ओ-अय्यारी<ref>धोख़ा और चालाकी, cheat and selfishness</ref>
ज़माने ने उसको हुस्न की इक अदा कहा

वह प्यार जिसे एहसास कहते हैं सब लोग
उसने आज उसको बदन की इक सदा<ref>पुकार, call</ref> कहा

मैं था उसका ज़माने की ग़ालियाँ खाकर
उसने मुझे किसी ग़ैर हुस्न पर फ़िदा कहा

जिन आँखों का तअल्लुक<ref>सम्बंध, relation</ref> रहा है मस्जिद से
उन्हें उसके यार ने महज़ मैक़दा कहा

उससे थी मेरे अपने ज़ख़्मों की कहानी
और उसने नये ज़ख़्मों को तयशुदा<ref>निश्चित, certain</ref> कहा

शब्दार्थ
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