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"'माया' श्रृंखला -८ /रमा द्विवेदी" के अवतरणों में अंतर
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१-जीव का आवागमन,
'माया'का ही सब काम है।
'माया' स्वाचालित सृष्टि है,
'माया' ही विश्वप्रधान है॥
२-निर्धनी गर मर गया यूं,
घर को क्या दे पायेगा?
विस्फोट में गर वो मरेगा,
कुछ तो अर्थ पायेगा॥
३-श्मशान जाने के लिए,
माया लगाती बोली है।
कोई चंदन संग जले ,
किसी की जलती होली है॥
४- माया के द्वारा ही तो,
अर्थी तक सज जाती है।
अर्थ कितना दे गए ?
दुनिया को यह बतलाती है॥