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"एक पेड़ चाँदनी / देवेन्द्र कुमार" के अवतरणों में अंतर

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एक पेड़ चाँदनी
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लगाया है आँगने
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फूले तो आ जाना
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एक फूल माँगने
  
एक पेड़ चाँदनी लगाया है आँगने
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ढिबरी की लौ
फूले तो जाना एक फूल माँगने
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जैसी लीक चली रही
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बादल का रोना है
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बिजली शरमा रही
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मेरा घर छाया है तेरे सुहाग ने ..।।
  
ढिबरी की लौ जैसी लीक चली आ रही
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तन कातिक मन अगहन
बादल का रोना है बिजली शरमा रही
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बार-बार हो रहा
मेरा घर छाया है तेरे सुहाग ने ..
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मुझमें तेरा कुआर
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जैसे कुछ बो रहा
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रहने दो यह हिसाब कर लेना बाद में.. ।।
  
तन कातिक मन अगहन बार-बार हो रहा
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नदी, झील सागर से  
मुझमें तेरा कुआर जैसे कुछ बो रहा
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रिश्ते मत जोड़ना  
रहने दो वह हिसाब कर लेना बाद में.. ॥
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लहरों को आता है  
 
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यहाँ वहाँ छोड़ना  
नदी, झील सागर से रिश्ते मत जोड़ना  
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मुझको पहुँचाया है तुम तक अनुराग ने.. ।।
लहरों को आता है यहाँ वहाँ छोड़ना  
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मुझको पहुँचाया है तुम तक अनुराग ने..
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21:33, 2 मई 2011 का अवतरण

एक पेड़ चाँदनी
लगाया है आँगने
फूले तो आ जाना
एक फूल माँगने

ढिबरी की लौ
जैसी लीक चली आ रही
बादल का रोना है
बिजली शरमा रही
मेरा घर छाया है तेरे सुहाग ने ..।।

तन कातिक मन अगहन
बार-बार हो रहा
मुझमें तेरा कुआर
जैसे कुछ बो रहा
रहने दो यह हिसाब कर लेना बाद में.. ।।

नदी, झील सागर से
रिश्ते मत जोड़ना
लहरों को आता है
यहाँ वहाँ छोड़ना
मुझको पहुँचाया है तुम तक अनुराग ने.. ।।