{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार: [[=कीर्ति चौधरी]][[Category:कविताएँ]][[Category: |संग्रह=’तीसरा सप्तक’ में शामिल रचनाएँ / कीर्ति चौधरी]]}}{{KKCatKavita}}<poem>लतरें हैं, ख़ुशबू है,पौधे हैं, फूल हैं ।ऊँचे दरख़्त कहीं, झाड़ कहीं ,शूल हैं ।
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~लान में उगाई तरतीबवार घास है ।इधर-उधर बाक़ी सब मौसम उदास है ।
लतरें हैं, ख़ुशबू है,पौधे हैं, फूल हैं।<br>ऊँचे दरख़्त कहीं, झाड़ कहीं ,शूल हैं।<br>लान में उगायी तरतीबवार घास है।<br>इधर-उधर बाक़ी सब मौसम उदास है।<br>आधी से ज़्यादा तो ज़मीन बेकार है।<br>है ।उगे की सुरक्षा ही माली को भार है।<br>है । लोहे का फाटक है, फाटक पर बोर्ड है।<br>है ।दृश्य कुछ यह पुराने माडल की फ़ोर्ड है।<br>है । भँवरों का, बुलबुल का, सौरभ का भाग है।<br>है ।शहर में हमारे यही कम्पनी बाग़ है।<br>है ।<br/poem>