भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कम्पनी बाग़ / कीर्ति चौधरी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो ("कम्पनी बाग़ / कीर्ति चौधरी" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite)))
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
|रचनाकार=कीर्ति चौधरी
+
|रचनाकार=कीर्ति चौधरी
 +
|संग्रह=’तीसरा सप्तक’ में शामिल रचनाएँ / कीर्ति चौधरी  
 
}}
 
}}
 +
{{KKCatKavita‎}}
 +
<poem>
 +
लतरें हैं, ख़ुशबू है,पौधे हैं, फूल हैं ।
 +
ऊँचे दरख़्त कहीं, झाड़ कहीं ,शूल हैं ।
  
लतरें हैं, ख़ुशबू है,पौधे हैं, फूल हैं।<br>
+
लान में उगाई तरतीबवार घास है ।
ऊँचे दरख़्त कहीं, झाड़ कहीं ,शूल हैं।<br>
+
इधर-उधर बाक़ी सब मौसम उदास है ।
लान में उगायी तरतीबवार घास है।<br>
+
 
इधर-उधर बाक़ी सब मौसम उदास है।<br>
+
आधी से ज़्यादा तो ज़मीन बेकार है ।
आधी से ज़्यादा तो ज़मीन बेकार है।<br>
+
उगे की सुरक्षा ही माली को भार है ।
उगे की सुरक्षा ही माली को भार है।<br>
+
 
लोहे का फाटक है, फाटक पर बोर्ड है।<br>
+
लोहे का फाटक है, फाटक पर बोर्ड है ।
दृश्य कुछ यह पुराने माडल की फ़ोर्ड है।<br>
+
दृश्य कुछ यह पुराने माडल की फ़ोर्ड है ।
भँवरों का, बुलबुल का, सौरभ का भाग है।<br>
+
 
शहर में हमारे यही कम्पनी बाग़ है।<br><br>
+
भँवरों का, बुलबुल का, सौरभ का भाग है ।
 +
शहर में हमारे यही कम्पनी बाग़ है ।
 +
</poem>

21:20, 5 मई 2011 के समय का अवतरण

लतरें हैं, ख़ुशबू है,पौधे हैं, फूल हैं ।
ऊँचे दरख़्त कहीं, झाड़ कहीं ,शूल हैं ।

लान में उगाई तरतीबवार घास है ।
इधर-उधर बाक़ी सब मौसम उदास है ।

आधी से ज़्यादा तो ज़मीन बेकार है ।
उगे की सुरक्षा ही माली को भार है ।

लोहे का फाटक है, फाटक पर बोर्ड है ।
दृश्य कुछ यह पुराने माडल की फ़ोर्ड है ।

भँवरों का, बुलबुल का, सौरभ का भाग है ।
शहर में हमारे यही कम्पनी बाग़ है ।