भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"काशी में महामारी / तुलसीदास/ पृष्ठ 1" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसीदास }} {{KKCatKavita}} Category:लम्बी रचना {{KKPageNavigation |पीछे=क…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
20:27, 9 मई 2011 का अवतरण
काशी में महामारी-1
( छंद 169, 170)
गौरी नाथ, भोरानाथ, भवत भवानीनाथ!
बिस्वनाथनुर फिरी आन कलिकालकी।
संकर-से -नर, गिरिजा-सी नारीं कासीबासी,
बेद कही, सही ससिसेखर कृपालकी।।
छगुख-गनेस तें महसेके पियरे लोग
बिकल बिलोकियत , नगरी बिहालकी।।
(170) (169)
गौरी नाथ, भोरानाथ, भवत भवानीनाथ!
बिस्वनाथनुर फिरी आन कलिकालकी।
संकर-से -नर, गिरिजा-सी नारीं कासीबासी,
बेद कही, सही ससिसेखर कृपालकी।।
छगुख-गनेस तें महसेके पियरे लोग
बिकल बिलोकियत , नगरी बिहालकी।।