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"काशी में महामारी / तुलसीदास/ पृष्ठ 7" के अवतरणों में अंतर

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बिरची बिरंचिकी , बसति बिस्वनाथकी जो,
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प्रानहू तें प्यारी पुरी केसव कृपालकी।
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जोतिरूप लिंगमई अगनित लिंगमयी,
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मोच्छ, बितरनि,  बिदरनि जगजालकी।।
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लोपति-बिलोकत कुलिपि भोंड़ें भालकी,।।
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हा हा करै तुलसी, दयानिधान राम! ऐसी,
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कासीकी कदर्थना कराल कलिकालकी।।
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आश्रम -बरन कलि बिबस बिकल भए,
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निज-निज मरजाद मोटरी-सी डार दी।।
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संकर सरोष महामारिहीतें जानियत,
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साहिब सरोष दूनी-दिन-दिन दारदी।।
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नारि-नर आरत पुकारत , सुनै न कोऊ ,
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काहूँ देवतनि मिलि मोटी मूठि मारि दी।।
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तुलसी सभी तपाल सुमिरें  कृपालराम ,
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समय सुकरूना सराहि सनकार दी।।
  
  इति
 
 
(उत्तरकाण्ड समाप्त)
 
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(कुछ प्रतियों में 177 छंद ही मिलते हैं ।
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काशी -नागरी -प्रचारिणी -सभा की प्रति में 
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183 छंद हैं । अतः 183 छंद रखे गये हैं।)
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(कवितावली समाप्त)
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09:19, 10 मई 2011 का अवतरण


विविध-3

 ( छंद 182, 183)

(182)

बिरची बिरंचिकी , बसति बिस्वनाथकी जो,
 प्रानहू तें प्यारी पुरी केसव कृपालकी।

जोतिरूप लिंगमई अगनित लिंगमयी,
 मोच्छ, बितरनि, बिदरनि जगजालकी।।

 देबी-देव-देवसरि-सिद्ध-मुनिबर-बास,
 लोपति-बिलोकत कुलिपि भोंड़ें भालकी,।।

हा हा करै तुलसी, दयानिधान राम! ऐसी,
कासीकी कदर्थना कराल कलिकालकी।।

(183)

आश्रम -बरन कलि बिबस बिकल भए,
निज-निज मरजाद मोटरी-सी डार दी।।

संकर सरोष महामारिहीतें जानियत,
साहिब सरोष दूनी-दिन-दिन दारदी।।

 नारि-नर आरत पुकारत , सुनै न कोऊ ,
काहूँ देवतनि मिलि मोटी मूठि मारि दी।।

तुलसी सभी तपाल सुमिरें कृपालराम ,
समय सुकरूना सराहि सनकार दी।।

(उत्तरकाण्ड समाप्त)
 
(कुछ प्रतियों में 177 छंद ही मिलते हैं ।
काशी -नागरी -प्रचारिणी -सभा की प्रति में
183 छंद हैं । अतः 183 छंद रखे गये हैं।)

इति
(कवितावली समाप्त)