भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

माँ / नीलेश रघुवंशी

9 bytes removed, 13:48, 26 जून 2007
घबराई हुई-सी प्लेटफॉ़म प्लेटफॉम पर
हाथों में डलिया लिए
क्यका क्य पक्षियों का कलरव
झूठमूठ ही बहलाता है हमें ?
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,726
edits