"बाल कविताएँ / भाग १ / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'" के अवतरणों में अंतर
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रोमा घर की पहरेदार<br> | रोमा घर की पहरेदार<br> | ||
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चारों पिल्ले हैं शैतान<br> | चारों पिल्ले हैं शैतान<br> | ||
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बिना बात भौंकते हैं जब<br> | बिना बात भौंकते हैं जब<br> | ||
डाँट बहुत रोमा की खाते।<br> | डाँट बहुत रोमा की खाते।<br> |
23:58, 25 मई 2008 के समय का अवतरण
मेरी नानी
मेरी नानी अच्छी नानी
बातें मैंने सारी मानी ।
रात हो गई मुझे सुनाओ
परियों वाली एक कहानी।
वही कहानी बड़ी पुरानी
जिसमें हो परियों की रानी।
भारी बस्ता
माँ मुझसे यह नहीं उठेगा
बस्ता इतना भारी।
इस बस्ते के आगे मेरी
हिम्मत बिल्कुल हारी
बोझ करा दो कुछ कम इसका
सुनलो बात हमारी ।
पत्ता
टूट गया जब डाल से पत्ता
उड़कर जा पहुँचा कलकत्ता
भीड़ देखकर वह घबराया
धूल –धुएँ से सिर चकराया
शोर सुना तो फट गए कान
वापस फिर बगिया में आया॥
दादा जी
ये मेरे प्यारे दादा जी
हैं सबसे न्यारे दादा जी।
उठ सवेरे घूमने जाते
सूरज उगते वापस आते।
नहा-धोकर पूजा करते
जोश सभी के मन में भरते।
रोमा
रोमा घर की पहरेदार
साथ में उसके पिल्ले चार।
चारों पिल्ले हैं शैतान
इधर-उधर हैं दौड़ लगाते
बिना बात भौंकते हैं जब
डाँट बहुत रोमा की खाते।