भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"गीतावली / तुलसीदास / पृष्ठ 10" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसीदास }} {{KKCatKavita}} Category:लम्बी रचना {{KKPageNavigation |पीछे=ग…)
 
पंक्ति 8: पंक्ति 8:
 
|पीछे=गीतावली / तुलसीदास / पृष्ठ 9
 
|पीछे=गीतावली / तुलसीदास / पृष्ठ 9
 
|आगे=गीतावली / तुलसीदास / पृष्ठ 11
 
|आगे=गीतावली / तुलसीदास / पृष्ठ 11
|सारणी=गीतावली / तुलसीदास  
+
|सारणी=गीतावली/ तुलसीदास  
 
}}
 
}}
 
<poem>
 
<poem>

19:22, 25 मई 2011 का अवतरण




भाग-2 अयोध्या काण्ड प्रारंभ
 
1(राज्याभिषेक की तैयारी)
  
नृपकर जोरि कह्यो गुर पाही।
तुम्हरी कृपा असीस, नाथ! मेरी सबै महेस निबाहीं।1।

राम होहिं जुबराज जियत मेरे, यह लालच मन माहीं।
बहुरि मोहिं जियबे-मरिबेकी चित चिंता कहु नाहीं। 2।

महाराज, भलो काज बिचार्यो बेगि बिलंब न कीजै।
बिधि दाहिनो होइ तौ सब मिलि जनम-लाहु लुटि लीजै।3।

सुनत नगर आनंद बधावन, कैकेयी बिलखानी।
तुलसिदास देवमायाबस कठिन कुटिलता ठानी।4।