भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"गीतावली सुन्दरकाण्ड पद 21 से 30 तक/पृष्ठ 1" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसीदास |संग्रह= गीतावली/ तुलसीदास }} {{KKCatKavita}} [[Category…) |
|||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
[[Category:लम्बी रचना]] | [[Category:लम्बी रचना]] | ||
{{KKPageNavigation | {{KKPageNavigation | ||
− | |पीछे=गीतावली / तुलसीदास / पृष्ठ | + | |पीछे=गीतावली / तुलसीदास / पृष्ठ 27 |
|आगे=गीतावली सुन्दरकाण्ड पद 21 से 30 तक/पृष्ठ 2 | |आगे=गीतावली सुन्दरकाण्ड पद 21 से 30 तक/पृष्ठ 2 | ||
|सारणी=गीतावली/ तुलसीदास / पृष्ठ 28 | |सारणी=गीतावली/ तुलसीदास / पृष्ठ 28 |
14:34, 9 जून 2011 के समय का अवतरण
(21)
कपिके सुनि कल कोमल बैन |
प्रेमपुलकि सब गात सिथिल भए, भरे सलिल सरसीरुह-नैन ||
सिय-बियोग-सागर नागर-मनु बूड़न लग्यो सहित चित-चैन |
लही नाव पवनज-प्रसन्नता, बरबस तहाँ गह्यो गुन-मैन ||
सकत न बूझि कुसल, बूझे बिन गिरा बिपुल ब्याकुल उर-ऐन |
ज्यों कुलीन सुचि सुमति बियोगिनि सनमुख सहै बिरह-सर पैन ||
धरि-धरि धीर बीर कोसलपति किए जतन, सके उत्तरु दै न |
तुलसिदास प्रभु सखा अनुजसों सैनहिं कह्यौ चलहु सजन सैन ||