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"बोल सुण्या जब साधू का" के अवतरणों में अंतर

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(नया पृष्ठ: <poem> बोल सुण्या जब साधू का, खाटका लग्या गात के म्हाँ । पाटमदे झट चाल …)
 
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22:57, 20 जून 2011 के समय का अवतरण

बोल सुण्या जब साधू का, खाटका लग्या गात के म्हाँ ।
पाटमदे झट चाल पङी, उनै भोजन लिया हाथ के म्हाँ ॥

उठ्ण लागी ल्हौर बदन मैं, जब नैनो से नैन लङी ।
मेरे पिया बिन सोचे समझे, या गलती करदी बोहोत बङी ॥
हिया उझळ कै आवण लाग्या, आंख्यां तै गई लाग झङी ।
हाथ जोङ कै पाटमदे झट, शीश झुका कै हुई खङी ॥

कह "लख्मीचन्द" न्यूँ बोली, तू क्युं ना रह्या साथ के म्हाँ ॥ पाटमदे झट चाल पङी...........