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"हमेशा दूर ही रहते हैं आप, क्या कहिए / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
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महल वे कांच के ढहते हैं आप, क्या कहिए! | महल वे कांच के ढहते हैं आप, क्या कहिए! | ||
16:22, 23 जून 2011 का अवतरण
हमेशा दूर ही रहते हैं आप, क्या कहिए!
हमें भी आप जो कहते हैं-- 'आप', क्या कहिए!
हमारी याद कब आयी कि जब हमीं न रहे
सुरों में प्यार के बहते हैं आप, क्या कहिए!
कभी तो यह न हुआ आके दो घड़ी मिल जायँ
खबर ही पूछते रहते हैं आप, क्या कहिए!
खोदी थी नींव ही आँसू की धार पर जिनकी
महल वे कांच के ढहते हैं आप, क्या कहिए!
कहा कि अब न सहेंगे तो हँसके बोल उठे
'सही है, खूब है, सहते हैं आप, क्या कहिए!'
रहें जो चुप तो वे देते हैं छेड़, 'चुप क्यों हैं!'
कहें तो बस यही कहते हैं, 'आप क्या कहिए!'
घड़ी-घड़ी में बदलता है बाग़ क्या-क्या रंग
गुलाब! देखते रहते हैं आप, क्या कहिए!