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भले ही दिल न मिले आँख चार होती रहीं / गुलाब खंडेलवाल
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,
20:36, 24 जून 2011
<poem>
भले ही दिल न मिले
,
आँख चार होती रहीं
छुरी की धार कलेजे के पार होती रही
Vibhajhalani
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