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"यह ज़िन्दगी तो कट गयी काँटों की डाल में / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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रातें हमारी कट गयीं ऐसे ही हाल में  
 
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बँधकर रही न डाल से खुशबू गुलाब की  
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बँधकर रही न डाल से ख़ुशबू गुलाब की  
 
कोयल न कूकती कभी सुर और ताल में  
 
कोयल न कूकती कभी सुर और ताल में  
 
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02:14, 25 जून 2011 का अवतरण


यह ज़िन्दगी तो कट गयी काँटों की डाल में
रखते हो अब गुलाब को सोने के थाल में

कुछ तो है बेबसी कि न आती है मौत भी
मछली तड़प रही है मछेरे के जाल में

साज़ों को ज़िन्दगी के बिखरना नहीं था यों
कुछ तो हुई थी भूल किसी की सँभाल में

आहट तो उनकी आयी पर आँखें हुईं न चार
रातें हमारी कट गयीं ऐसे ही हाल में

बँधकर रही न डाल से ख़ुशबू गुलाब की
कोयल न कूकती कभी सुर और ताल में