भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बहुत दिनों बाद / उद्भ्रान्त" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उद्‌भ्रान्त }} Category:गीत <poem> बहुत दिनों बाद एक गीत …)
 
(कोई अंतर नहीं)

15:58, 29 जून 2011 के समय का अवतरण

बहुत दिनों बाद
एक गीत लिखा है
लेकिन यह गीत नहीं
पिछले गीतों जैसा

इसमें रोमांटिकता नहीं है
सच ! इसमें भावुकता नहीं है
यह यथार्थ की
टेढ़ी गलियों में घूमा है
इसने-खुरदुरा-
वक़्त का चेहरा चूमा है
यह पानीदार ख़्वाब नहीं है
फिर भी इसका जवाब नहीं है
बहुत दिनों बाद
एक स्वप्न दिखा है
लेकिन यह स्वप्न नहीं
पिछले स्वप्नों जैसा

इसमें लिजलिजी गंध नहीं है
वही घिसा-पिटा छंद नहीं है
इसमें संस्पर्श
गद्य का भी मिल जायेगा
शब्द-शब्द
अनगढ़ साँचे में ढल जायेगा
यह पिघली हुई पीर नहीं है
इसकी कोख में नीर नहीं है
बहुत दिनों बाद
एक जख़्म पका है
लेकिन यह जख़्म नहीं
पिछले जख़्मों जैसा

लेकिन यह गीत नहीं
पिछले गीतों जैसा

--’वैचारिकी संकलन’ (नई दिल्ली), मई, 1996