भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
अक्स हम उनका उतारा किये हैं कागज़ पर
कीजिये जब भी ज़रा गौरग़ौर, नज़र आता है
इस बयाबान के आगे भी शहर है,ऐ दोस्त!
और, दो-चार क़दम और, नज़र आता है
कोई कोयल न तुझे ढूँढती ढूँढ़ती फिरती हो, गुलाब!
आज आमों पे नया बौर नज़र आता है
<poem>
2,913
edits