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"ज़माने भर की निगाहों से टालकर लाये / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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08:33, 2 जुलाई 2011 का अवतरण


ज़माने भर की निगाहों से टालकर लाये
हम उनके प्यार को कितना सँभालकर लाये!

हरेक लहर में क़यामत का शोर उठता था
किसी तरह से ये किश्ती निकालकर लाये

सभी को एक ही चितवन ने कर दिया ख़ामोश
यहाँ थे लोग भी क्या-क्या सवाल कर लाये!

वही हैं आप, वही हम, वही हैं प्याले भी
नया कुछ और उन आँखों से ढालकर लाये

फ़िज़ाँ बहार की तुझसे ही सज रही है गुलाब!
भले ही फूल कई मुँह को लाल कर लाये