भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कभी हमसे खुलो जाने के पहले / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह= सौ गुलाब खिले / गुलाब खं…) |
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 10: | पंक्ति 10: | ||
मिलें आँखें तो शरमाने के पहले | मिलें आँखें तो शरमाने के पहले | ||
− | ज़रा आँसू तो थम जायें | + | ज़रा आँसू तो थम जायें कि उनको |
नज़र भर देख लें जाने के पहले | नज़र भर देख लें जाने के पहले | ||
09:29, 2 जुलाई 2011 का अवतरण
कभी हमसे खुलो जाने के पहले
मिलें आँखें तो शरमाने के पहले
ज़रा आँसू तो थम जायें कि उनको
नज़र भर देख लें जाने के पहले
जो घायल खुद हो औरों को रुलाये
शमा जलती है परवाने के पहले
मिला प्याले में जितना कुछ बहुत है
इसे पी लो भी छलकाने के पहले
ग़ज़ल यों तो बहुत सादी थी मेरी
कोई क्यों रो दिया गाने के पहले!
गुलाब! ऐसे भी क्या चुप हो गए तुम!
खिलो कुछ रात घिर आने के पहले