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"पेड़ / यह जो हरा है / प्रयाग शुक्ल" के अवतरणों में अंतर

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22:49, 4 जुलाई 2007 का अवतरण


टकराता ही रहता है वह पेड़,

दीवारों से,

मकान की ।


लिए हुए हरापन, परत धूल की,

बूँदें बारिश की । किरणें, चाँदनी ।

और हवा

जो दिखती है सबसे

पहले उस पर । टिकती हैं आँखें

दुखी-सुखी ।


देखो, देखो

पेड़ की रगों में भी बह रही

है वह कथा

जो इस वक़्त

तुम रहे हो सोच ।