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"कोई हमें सताये, सताता ही जाये तो / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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देखें ग़ज़ल में रंग जमाता है यहाँ कौन
 
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कोई ज़रा गुलाब-सी खुशबू उडाये तो!
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09:44, 2 जुलाई 2011 का अवतरण


कोई हमें सताए, सताता ही जाये तो
हम क्या करें जो मौत भी आकर न आये तो!

झूठा है प्यार, उनमें जो रंगत नहीं आये
कोई हमारी आँखों से आँखें मिलाये तो!

अब और कुछ बने न बने, ख़ुश हैं हम कि आज
बातें हमारी सुनके ही वे मुस्कुराये तो

माना कि आज रूप ने परदा उठा दिया
हम क्या करें नज़र ही अगर उठ न पाये तो!

यादों पे कल हमारी चढ़ायेंगे फूल वे
उनकी बला से जाए अगर जान जाये तो

देखें ग़ज़ल में रंग जमाता है यहाँ कौन
कोई ज़रा गुलाब-सी ख़ुशबू उड़ाये तो!