भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"खिली गुलाब की दुनिया तो है सभी के लिये / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) |
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 8: | पंक्ति 8: | ||
खिली गुलाब की दुनिया तो है सभी के लिये | खिली गुलाब की दुनिया तो है सभी के लिये | ||
− | मगर गुलाब है खिलता किसी-किसी के | + | मगर गुलाब है खिलता किसी-किसी के लिये |
न मौत के लिये आये न ज़िन्दगी के लिये | न मौत के लिये आये न ज़िन्दगी के लिये | ||
− | तड़पने आये हैं दुनिया में दो घड़ी के | + | तड़पने आये हैं दुनिया में दो घड़ी के लिये |
अदाएं तेरी जो, ऐ ज़िन्दगी! सँभाल सके | अदाएं तेरी जो, ऐ ज़िन्दगी! सँभाल सके | ||
− | कलेजा चाहिए पत्थर का आदमी के | + | कलेजा चाहिए पत्थर का आदमी के लिये |
ये हमने माना कि जीवन है एक अँधेरी रात | ये हमने माना कि जीवन है एक अँधेरी रात | ||
पंक्ति 20: | पंक्ति 20: | ||
करेगा कौन उन्हें प्यार अब हमारी तरह! | करेगा कौन उन्हें प्यार अब हमारी तरह! | ||
− | न चाँद फिर कभी निकलेगा चाँदनी के | + | न चाँद फिर कभी निकलेगा चाँदनी के लिये |
जहां भी होती है चर्चा तेरी रंगीनी की | जहां भी होती है चर्चा तेरी रंगीनी की | ||
हमारा नाम भी लेते हैं सादगी के लिये | हमारा नाम भी लेते हैं सादगी के लिये | ||
<poem> | <poem> |
09:45, 2 जुलाई 2011 का अवतरण
खिली गुलाब की दुनिया तो है सभी के लिये
मगर गुलाब है खिलता किसी-किसी के लिये
न मौत के लिये आये न ज़िन्दगी के लिये
तड़पने आये हैं दुनिया में दो घड़ी के लिये
अदाएं तेरी जो, ऐ ज़िन्दगी! सँभाल सके
कलेजा चाहिए पत्थर का आदमी के लिये
ये हमने माना कि जीवन है एक अँधेरी रात
कभी तो वे भी चले आयें रोशनी के लिये
करेगा कौन उन्हें प्यार अब हमारी तरह!
न चाँद फिर कभी निकलेगा चाँदनी के लिये
जहां भी होती है चर्चा तेरी रंगीनी की
हमारा नाम भी लेते हैं सादगी के लिये