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"नज़र अब उनसे मिलाने की बात कौन करे / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
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लिया था नाम ही चलने का, भर आयी आँखें | लिया था नाम ही चलने का, भर आयी आँखें |
10:06, 2 जुलाई 2011 का अवतरण
नज़र अब उनसे मिलाने की बात कौन करे!
ख़ुद अपने घर को लुटाने की बात कौन करे!
लिया था नाम ही चलने का, भर आयी आँखें
अब उनसे लौटके आने की बात कौन करे!
यही है ठीक, मुझे आपने देखा ही नहीं
जगे हुए को जगाने की बात कौन करे!
हमारी बात को सुनकर वे हँसके बोल उठे,
'सही है बीते ज़माने की बात कौन करे!'
सही है, ठीक है, सच्चे हो तुम्हीं, हम झूठे
बहाना है तो बहाने की बात कौन करे!
गुलाब! आपकी चुप्पी ही रंग लायेगी
सुगंध कहके बताने की बात कौन करे!