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"हमारी रात अँधेरी से चाँदनी बन जाय / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
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वे और होते हैं जिनसे कि बंदगी बन जाय | वे और होते हैं जिनसे कि बंदगी बन जाय |
19:22, 2 जुलाई 2011 का अवतरण
हमारी रात अँधेरी से चाँदनी बन जाय
ज़रा सा रुख़ तो मिलाओ कि ज़िन्दगी बन जाय
वे और होते हैं जिनसे कि बंदगी बन जाय
मिले जो देवता हमको तो आदमी बन जाय
तुम्हारा प्यार हमारा है, बस हमारा है
कहीं न जान की दुश्मन ये दोस्ती बन जाय
कभी किसी से जो लग जाय तो छूटे ही नहीं
नज़र का खेल है यह तो कभी-कभी बन जाय
गुलाब इतने हैं दुनिया की चोट खाए हुए
कलम हवा में छिड़क दें तो शायरी बन जाय