भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"बारिश / वी०एम० गिरिजा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Hemantkumar (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वी०एम० गिरिजा |संग्रह=प्रेम : एक एलबम / वी०एम० गि…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
14:00, 3 जुलाई 2011 का अवतरण
बारिश में निकलने को मन नहीं कर रहा है
पर वह निकलने तक ही बात है ...
बालों को सहेजती उँगलियाँ बनकर
होठों पर होठों की आर्द्रता-सी
शंखदार गले को घेरते दुग्ध सागर की तरह
स्तनों पर टूटे धागों-सी बिखरती मोतियों की तरह
उदर पर सुखोष्मल प्रवाह-सी
जाँघों पर,
पैरों में,
पैरों की उँगलियों में,
स्वयं भूली हुई
जल-नृत्य की तरह
आनंद ताण्डव की तरह
बारिश .....