भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मुझे भी अपना बना लो, बहुत उदास हूँ मैं / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) |
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 8: | पंक्ति 8: | ||
मुझे भी अपना बना लो, बहुत उदास हूँ मैं | मुझे भी अपना बना लो, बहुत उदास हूँ मैं | ||
− | गले से | + | गले से आके लगा लो, बहुत उदास हूँ मैं |
अँधेरा लूटने आया है रोशनी का सुहाग | अँधेरा लूटने आया है रोशनी का सुहाग | ||
पंक्ति 16: | पंक्ति 16: | ||
फिर अपने पास बुला लो, बहुत उदास हूँ मैं | फिर अपने पास बुला लो, बहुत उदास हूँ मैं | ||
− | गिरे थे तुम भी तो ऐसे ही चोट | + | गिरे थे तुम भी तो ऐसे ही चोट खाके कभी |
हँसो न देखनेवालो! बहुत उदास हूँ मैं | हँसो न देखनेवालो! बहुत उदास हूँ मैं | ||
00:38, 5 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
मुझे भी अपना बना लो, बहुत उदास हूँ मैं
गले से आके लगा लो, बहुत उदास हूँ मैं
अँधेरा लूटने आया है रोशनी का सुहाग
दिया कोई तो जला लो, बहुत उदास हूँ मैं
नये सिरे से सजायेंगे ज़िन्दगी को आज
फिर अपने पास बुला लो, बहुत उदास हूँ मैं
गिरे थे तुम भी तो ऐसे ही चोट खाके कभी
हँसो न देखनेवालो! बहुत उदास हूँ मैं
अब इससे बढ़के कँटीली भी राह क्या होगी
खिलो भी पाँव के छालो! बहुत उदास हूँ मैं
झकोरे खाने लगी नाव आके तीर के पास
बचा सको तो बचा लो, बहुत उदास हूँ मैं
बिखर चली हैं पँखुरियाँ गुलाब की सब ओर
कोई तो आके सँभालो, बहुत उदास हूँ मैं