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"अब क्यों उदास आपकी सूरत भी हुई है / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
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पत्थर को पिघलने की ज़रूरत भी हुई है | पत्थर को पिघलने की ज़रूरत भी हुई है | ||
− | तारों को | + | तारों को देखकर ही नहीं आयी उनकी याद |
कुछ बात बिना कोई मुहूरत भी हुई है | कुछ बात बिना कोई मुहूरत भी हुई है | ||
− | मैं | + | मैं ज़िन्दगी को रख दूँ छिपाकर कि मेरे बाद |
− | सुनता हूँ, | + | सुनता हूँ, उन्हें इसकी ज़रूरत भी हुई है |
दुनिया की भीड़भाड़ में कुछ मैं ही गुम नहीं | दुनिया की भीड़भाड़ में कुछ मैं ही गुम नहीं |
01:33, 7 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
अब क्यों उदास आपकी सूरत भी हुई है
पत्थर को पिघलने की ज़रूरत भी हुई है
तारों को देखकर ही नहीं आयी उनकी याद
कुछ बात बिना कोई मुहूरत भी हुई है
मैं ज़िन्दगी को रख दूँ छिपाकर कि मेरे बाद
सुनता हूँ, उन्हें इसकी ज़रूरत भी हुई है
दुनिया की भीड़भाड़ में कुछ मैं ही गुम नहीं
गुम इसमें मेरे प्यार की मूरत भी हुई है
काँटों में रखके पूछ रहे हो गुलाब से! --
'कोई तुम्हारे जीने की सूरत भी हुई है?'