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"अब क्यों उदास आपकी सूरत भी हुई है / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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सुनता हूँ, उनको इसकी ज़रूरत भी हुई है   
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सुनता हूँ, उन्हें इसकी ज़रूरत भी हुई है   
  
 
दुनिया की भीड़भाड़ में कुछ मैं ही गुम नहीं  
 
दुनिया की भीड़भाड़ में कुछ मैं ही गुम नहीं  

01:33, 7 जुलाई 2011 के समय का अवतरण


अब क्यों उदास आपकी सूरत भी हुई है
पत्थर को पिघलने की ज़रूरत भी हुई है

तारों को देखकर ही नहीं आयी उनकी याद
कुछ बात बिना कोई मुहूरत भी हुई है

मैं ज़िन्दगी को रख दूँ छिपाकर कि मेरे बाद
सुनता हूँ, उन्हें इसकी ज़रूरत भी हुई है

दुनिया की भीड़भाड़ में कुछ मैं ही गुम नहीं
गुम इसमें मेरे प्यार की मूरत भी हुई है

काँटों में रखके पूछ रहे हो गुलाब से! --
'कोई तुम्हारे जीने की सूरत भी हुई है?'