"कभी सिर झुकाके चले गए, कभी मुँह फिराके चले गये / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
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उसी बाँसुरी के सुरों पे हम, कोई धुन सजाके चले गये | उसी बाँसुरी के सुरों पे हम, कोई धुन सजाके चले गये | ||
− | वही पँखुरियाँ, वही बाँकपन, वही रंग-रूप की | + | वही पँखुरियाँ, वही बाँकपन, वही रंग-रूप की शोख़ियाँ |
वो गुलाब और ही था मगर, जिसे तुम खिलाके चले गये | वो गुलाब और ही था मगर, जिसे तुम खिलाके चले गये | ||
01:40, 7 जुलाई 2011 का अवतरण
कभी सिर झुकाके चले गए, कभी मुँह फिराके चले गये
मेरा साथ कोई न दे सका, सभी आये, आके चले गये
मुझे डूबने से उबार लें, कभी यह तो उनसे न हो सका
मेरी भावना के कगार पर, वे लहर उठाके चले गये
नहीँ एक ऐसे तुम्हीं यहाँ, जिसे प्यार मिल न सका कभी
कई लोग पहले भी आये थे, यही चोट खाके चले गये
जो गले में डोर-सी थी बँधी, उसे तोड़ तो न सका कोई
कई छटपटा के चले गये, कई मुस्कुराके चले गये
मेरी ज़िन्दगी का निचोड़ था, कोई ऐसी-वैसी कथा न थी
वही ज़िन्दगी जिसे प्यार से कभी तुम सजाके चले गये
जो ह्रदय को प्यार का दुख मिला, तो अधर को गीत की बाँसुरी
उसी बाँसुरी के सुरों पे हम, कोई धुन सजाके चले गये
वही पँखुरियाँ, वही बाँकपन, वही रंग-रूप की शोख़ियाँ
वो गुलाब और ही था मगर, जिसे तुम खिलाके चले गये
उसे अपने मन के ग़रूर से, न सुना किसी ने तो क्या हुआ!
वो ग़ज़ल किसी से भी कम न थी, जिसे हम सुनाके चले गये