भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कोई साथी भी नहीं, कोई सहारा भी नहीं / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) |
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 19: | पंक्ति 19: | ||
उनको जीवन की तबाही में पुकारा भी नहीं | उनको जीवन की तबाही में पुकारा भी नहीं | ||
− | + | तेज़ लहरों के झकोरों में बहे जाते हैं हम | |
हाथ में आपके आँचल का किनारा भी नहीं | हाथ में आपके आँचल का किनारा भी नहीं | ||
01:48, 7 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
कोई साथी भी नहीं, कोई सहारा भी नहीं
हम वहाँ हैं कि जहाँ प्यार हमारा भी नहीं
कोई गुत्थी कभी जीवन की न सुलझी हमसे
दो घड़ी आपकी अलकों को सँवारा भी नहीं
प्यार की याद कभी हमसे भुलाई न गयी
प्यार में दिल कभी हारा भी है, हारा भी नहीं
चूमते सिर को गये सैकड़ों आँधी-तूफ़ान
उनको जीवन की तबाही में पुकारा भी नहीं
तेज़ लहरों के झकोरों में बहे जाते हैं हम
हाथ में आपके आँचल का किनारा भी नहीं
भेद तो यह कभी खुलता कि दूसरा है कौन
ज़िन्दगी ने कभी घूँघट को उतारा भी नहीं
यों तो इस बाग़ में हर डाल पे खिलते हैं गुलाब
मुस्कुराने का मगर हमको इशारा भी नहीं!