भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बातें हम अपने प्यार की, उनसे छिपाके कह गये / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह= सौ गुलाब खिले / गुलाब खं…)
 
 
(इसी सदस्य द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 8: पंक्ति 8:
  
 
बातें हम अपने प्यार की, उनसे छिपाके कह गये  
 
बातें हम अपने प्यार की, उनसे छिपाके कह गये  
देखिये बात क्या बने, कुछ तो बना के कह गये
+
देखिये बात क्या बने, कुछ तो बनाके कह गये
  
 
कहने की ताब थी न पर, शह उनकी पाके कह गये
 
कहने की ताब थी न पर, शह उनकी पाके कह गये
पंक्ति 14: पंक्ति 14:
  
 
आँखों ने उनकी कल हमें, जाने पिला दिया था क्या!
 
आँखों ने उनकी कल हमें, जाने पिला दिया था क्या!
कह न सके सके थे जो कभी मस्ती में आके कह गये
+
कह न सके थे जो कभी, मस्ती में आके कह गये
  
 
भौंहों से, चितवनों से कुछ, आँखों से कुछ सुना दिया   
 
भौंहों से, चितवनों से कुछ, आँखों से कुछ सुना दिया   
पंक्ति 20: पंक्ति 20:
  
 
काँटोंभरे गुलाब को कोई बड़ा बताये क्यों  
 
काँटोंभरे गुलाब को कोई बड़ा बताये क्यों  
माना कि बात वह भी कुछ, खुशबू उड़ाके कह गए
+
माना कि बात वह भी कुछ, ख़ुशबू उड़ाके कह गए
 
<poem>
 
<poem>

02:20, 7 जुलाई 2011 के समय का अवतरण


बातें हम अपने प्यार की, उनसे छिपाके कह गये
देखिये बात क्या बने, कुछ तो बनाके कह गये

कहने की ताब थी न पर, शह उनकी पाके कह गये
जीने की बेबसी को हम सुर में सजाके कह गये

आँखों ने उनकी कल हमें, जाने पिला दिया था क्या!
कह न सके थे जो कभी, मस्ती में आके कह गये

भौंहों से, चितवनों से कुछ, आँखों से कुछ सुना दिया
फिर भी जो अनकहा था वह पलकें झुकाके कह गए

काँटोंभरे गुलाब को कोई बड़ा बताये क्यों
माना कि बात वह भी कुछ, ख़ुशबू उड़ाके कह गए