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"इन आँसुओं से तुम अपना दामन सजा रहे थे, पता नहीं था / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
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दिया हर उम्मीद का बुझाकर, सुला लिया अपना दिल तो हमने | दिया हर उम्मीद का बुझाकर, सुला लिया अपना दिल तो हमने |
02:56, 7 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
इन आँसुओं से तुम अपना दामन सजा रहे थे, पता नहीं था
मुझे मिटाकर भी मेरी किस्मत बना रहे थे, पता नहीं था
हवा में घुँघरू से बज उठे थे, दिशाएँ करवट बदल रही थीं
किरन के घूँघट में मुँह छिपाकर तुम आ रहे थे, पता नहीं था
दिया हर उम्मीद का बुझाकर, सुला लिया अपना दिल तो हमने
मगर उन आँखों में प्यार की लौ जगा रहे थे, पता नहीं था
ये कैसी बस्ती है जिसकी हद में, गए हैं उठ-उठके लोग सारे!
सभी को मिट्टी के ये घरौंदे लुभा रहे थे, पता नहीं था
कहाँ हैं रंगों की शोख़ियाँ वे, कहाँ हैं अब वे बहार के दिन!
गुलाब! तुम बाग़ भर में बस एक हवा रहे थे, पता नहीं था