भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"आग में / सांवर दइया" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
− | |रचनाकार= | + | |रचनाकार= सांवर दइया |
|संग्रह= | |संग्रह= | ||
}} | }} |
05:48, 8 जुलाई 2011 का अवतरण
आकाश में
गिद्धों की तरह तिर रहे हैं
हवाई जहाज़-हैलीकॉप्टर
आग में ओटी हुई बाटी
उथलना भूल जाती हैं
चूल्हे के पास बैठी हुई औरतें
धमाके.... धमाके.... धमाके...
अब बाटी उथलने से क्या होगा ?
अब तो
सब कुछ आग में ही है !
अनुवाद : मोहन आलोक