"निराश प्राण में आशा के सुर सजाते चलो / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) |
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 20: | पंक्ति 20: | ||
कुछ इस बहाने ही आयी तो रोशनी घर में | कुछ इस बहाने ही आयी तो रोशनी घर में | ||
− | गले | + | गले लगाके बिजलियों को मुस्कुराते चलो |
कहाँ से लौ उतर आई है इसको मत पूछो | कहाँ से लौ उतर आई है इसको मत पूछो | ||
− | तुम्हें तो बस कि | + | तुम्हें तो बस कि दिये से दिया जलाते चलो |
कहीं पड़ाव से पहले ही नींद घेर न ले | कहीं पड़ाव से पहले ही नींद घेर न ले |
00:02, 9 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
निराश प्राण में आशा के सुर सजाते चलो
अँधेरी रात है, कोई दिया जलाते चलो
दिलों में प्यार की पीड़ा नई जगाते चलो
कुछ और रूप की दुनिया को जगमगाते चलो
किरन-किरन में मधुर बाँसुरी बजाते चलो
कली-कली के कलेजे को गुदगुदाते चलो
हमारे दिल की ही कमजोरियों पे मत जाओ
हमारे प्यार का भी ज़ोर आजमाते चलो
कुछ इस बहाने ही आयी तो रोशनी घर में
गले लगाके बिजलियों को मुस्कुराते चलो
कहाँ से लौ उतर आई है इसको मत पूछो
तुम्हें तो बस कि दिये से दिया जलाते चलो
कहीं पड़ाव से पहले ही नींद घेर न ले
कुछ और तेज सुरों में क़दम बढाते चलो
कभी तो उनको लुभा लेंगी तड़पनें इसकी
ये दिल का साज़ जहाँ तक बजे बजाते चलो
कटेगा इससे भी कुछ तो हवा का सन्नाटा
अकेलेपन में कोई गीत गुनगुनाते चलो
गुलाब! बाग़ में तुमसे ही है बहार आई
सुगंध प्यार की निकलो जिधर, लुटाते चलो