भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"हमें तो कहते हो, 'अपना ख़याल है कि नहीं?' / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 19: पंक्ति 19:
 
जो सोचिये तो उलझता है जाल, 'है कि नहीं'
 
जो सोचिये तो उलझता है जाल, 'है कि नहीं'
  
हमारे प्यार का रोना है कोई गीत नहीं  
+
हमारे प्यार का रोना है, कोई गीत नहीं  
 
किसे है होश कि सुर और ताल है कि नहीं!
 
किसे है होश कि सुर और ताल है कि नहीं!
  

00:16, 9 जुलाई 2011 का अवतरण


हमें तो कहते हो,'अपना ख़याल है कि नहीं?'
तुम्हारे दिल का भी ऐसा ही हाल है कि नहीं!

कभी तो पास चले आओ कि देखें हम भी
नज़र में अब भी वो पहला सवाल है कि नहीं

जहाँ पे बैठ के छेड़ी थी हमने प्यार की तान
तुम्हें भी याद वो फूलों की डाल है कि नहीं?

जो देखिये तो वही वह दिखाई देता है
जो सोचिये तो उलझता है जाल, 'है कि नहीं'

हमारे प्यार का रोना है, कोई गीत नहीं
किसे है होश कि सुर और ताल है कि नहीं!

चुभे हैं तन में तो काँटे हज़ार-लाख, मगर
गुलाब लाल है अब तक, कमाल है कि नहीं