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"दिन ज़िन्दगी के यों भी गुज़र जायँ तो अच्छा! / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
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फिर भी कभी ये हाथ ठहर जायँ तो अच्छा | फिर भी कभी ये हाथ ठहर जायँ तो अच्छा | ||
00:41, 9 जुलाई 2011 का अवतरण
दिन ज़िन्दगी के यों भी गुज़र जायँ तो अच्छा
हम इस ख़ुशी के दौर में मर जायँ तो अच्छा
यों तो न रुक सकी कभी कूची तेरी, रँगसाज़!
फिर भी कभी ये हाथ ठहर जायँ तो अच्छा
मज़मा उठा-उठा है, झुकी आ रही है शाम
मेले से हम अब लौटके घर जायँ तो अच्छा
चरणों में बिछी उनके पँखुरियाँ गुलाब की
कुछ आख़िरी घड़ी में सँवर जायँ तो अच्छा